जैसा कि आप सभी जानते हैं कि बिहार का मुजफ्फरपुर जिला अपनी जायकेदार व रसीली लीचियों के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता है। गर्मी में लीची से लोगों को राहत तो मिलती ही है साथ ही इसका सेवन स्वास्थ्य के लिए भी बहुत लाभदायक होता है। इस समय तो लीची का मौसम समाप्त हो चुका है पर इसके विकल्प के रूप में एक ऐसा ही फल जो लगभग इसी प्रजाति का है अपनी पूरी तैयारी और सज धज के साथ राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र परिसर में बिक्री के लिए तैयार है जिसे लौंगन नाम से जाना जाता है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि लौंगन के पौधे को एक प्रयोग के तौर पर लगाया गया था लेकिन इसकी उत्पादन क्षमता व क्वालिटी को देखकर किसानों को इसके उत्पादन के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है। इस मौसम में इस स्वादिष्ट फल के पकने की शुरुआत हो चुकी है। जल्दी ही बिक्री के लिए तैयार इस फल का स्वाद आम लोग ले सकेंगे।
मूल रूप से थाईलैंड व वियतनाम का है लौंगन फल
राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र के निदेशक डॉ विकास दास के अनुसार लौंगन वियतनाम और थाईलैंड में खाया जाने वाला सबसे पसंदीदा फल है। इसके पौधे को शोध के लिए बंगाल के 24 परगना से लाया गया था। पौधे लगाने के बाद इसके उत्साहजनक परिणाम देखने को मिले।
किसानों को खेती के लिए प्रोत्साहन
लौंगन के पौधे उगाने के लिए किसानों को लगातार प्रोत्साहित किया जा रहा है। अप्रैल माह में लौंगन के पेड़ में फूल लगने लगते हैं फिर जुलाई के अंत तक फल तैयार हो जाते हैं, अगस्त के पहले हफ्ते तक यह समाप्त भी होने लगते हैं।
कीड़ों से मुक्त हैं ये फल
लीची जैसा दिखने वाला या कह लीजिए की लीची की ही प्रजाति का यह फल होता है। पेड़ और पत्ते बिल्कुल लीची की तरह ही दिखते हैं। पर इसका फल लीची की तरह आकार में अंडाकार और लाल नहीं होता। साथ ही लीची की तरह इसके फल में कीड़े नहीं लगते। जब लीची का सीजन समाप्त हो जाता है, उसके एक महीने बाद तक लौंगन का फल खाने के लिए उपलब्ध रहता है।
रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाला फल
चिकित्सा विज्ञानियों के अनुसार लौंगन फल में भरपूर मात्रा में ऐसे तत्व हैं जो शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता में वृद्धि करते हैं जैसे कार्बोहाइड्रेट, कैरोटीन, रेटिनाल, एस्कार्बिक एसिड, प्रोटीन, फाइबर आदि। साथ ही इसमें एंटी पेन व anti-cancer तत्व मौजूद होते हैं।
नेचुरल स्वीटनर
कृषि वैज्ञानिक डॉ सुनील कुमार के अनुसार लौंगन लीची परिवार का ही फल है। लीची अनुसंधान केंद्र मुजफ्फरपुर में ही इसके पौधे की खेती शुरू की गई थी। इस समय लगभग सभी पेड़ों पर फल आ गए हैं। प्रति पेड़ 1 क्विंटल फल होने का अनुमान है। 20 अगस्त के आसपास फल तोड़ने का काम शुरू होगा। अत्यंत मीठा होने के कारण इसे नेचुरल स्वीटनर कहा जाता है। इस फल के गुदे, बीज और पल्प में औषधीय गुण होने के कारण इसका उपयोग औषधि बनाने के लिए भी किया जा सकता है।