Supreme Court Decision: परिवार का कौन सा सदस्य बिना पूछे संपत्ति बेच सकता है? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

Supreme Court Decision: प्रॉपर्टी से संबंधित नियमों को अक्सर लोगों को सही से जानकारी नहीं हो पाती है। इस वजह से लोग उनकी ना समझी का फायदा उटा लेते हैं और जमीन-जायदाद को लेकर विवादों में घिर जाते हैं। इस वजह से बहुत जरूरी है कि आपको प्रॉपर्टी के नियम पता होने चाहिए और इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने इसपर एक फैसला सुनाया है। घर के किस सदस्य से पूछकर प्रॉपर्टी खरीदी या बेची जा सकती है इसको लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कुछ टिप्पणी भी की है जिन्हें हर किसी को जरूर जानना चाहिए। घर के किस सदस्य की राय या सहमति लेना जरूरी होता है।

Supreme Court Decision

सुप्रीम कोर्ट के अनुसार, हिंदू अविभाजित परिवार का मुखिया, कर्ता, संपत्ति को गिरवी रख सकता है। फिर चाहे इसमें नाबालिग का हित हो। इसमें परिवार के मुखिया को सभी सदस्यों की सहमति लेने की जरूरत भी नहीं होती है, इसका मतलब ये है कि हिन्दू अविभाजित परिवार के मुखिया को संपत्ति को गिरवी में रखने का अधिकार है, भले ही उसके परिवार के सदस्य इससे सहमत हो या ना हो।

क्या है सुप्रीम कोर्ट का फैसला? (Supreme Court Decision)

जस्टिस संजीव खन्ना और एसवीएन भट्टी ने एक मामले में कहा है कि याचिकाकर्ता एनएस बालाजी का दावा है कि विचारधीन संपत्ति एक संयुक्त परिवार/हिन्दू अविभाजित परिवार (HUF) की संपत्ति थी, जिसे याचिकाकर्ता के पिता ने इसमें से एक के रूप में गिरवी रखा दिया था। याचिकाकर्ता ने यह भी तर्क दिया कि उनके उसके पिता एचयूएफ कर्ता थे।

3 अक्टूबर को पीठ ने आदेश देते हुए कहा है कि एचयूएफ संपत्ति की तुलना में कर्ता के अधिकारों पर स्थिति अच्छी तरह से तय है। उन्होंने निर्णय लिया कि कर्ता को एचयूएफ संपत्ति को बेचने, निपटाने, या अलग करने का अधिकार है, भले ही परिवार के किसी नाबालिग के पास अविभाजित हित हो।

पीठ ने यह भी बताया की एक एचयूएफ अपने कर्ता या परिवार के किसी व्यसक सदस्य के माध्यम से एचयूएफ संपत्ति के प्रबंधन में कार्य कर सकता है। इस प्रकार, यहां याचिकाकर्ता के पिता, एचयूएफ के कर्ता के रूप में एचयूएफ संपत्ति को गिरवी रखने के हकदार थे। एचयूएफ के बेटे या अन्य सदस्यों को बंधक के लिए सहमति देने वाले पक्ष होने की आवश्यकता नहीं है।

इसके बाद, अदालत ने मद्रास उच्च न्यायालय के 31 जुलाई, 2023 के फैसले में हस्तक्षेप करने से मना किया और एनएस बालाजी द्वारा विशेष अनुमति याचिका खारिज कर दी। बेंच ने कहा कि उन्हें विवादित फैसले में हस्तक्षेप करने की इच्छा नहीं हैं और इसलिए उन्होंने विशेष अनुमति याचिकाएं खारिज कर दी।

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