Supreme Court Decision: रिश्ते जितने मजबूत दिखते हैं, उतने ही नाजुक भी होते हैं। खासकर पति-पत्नी का रिश्ता, जो पूरी तरह से विश्वास और प्यार की नींव पर टिका होता है। विवाद की स्थिति में यह रिश्ता तेजी से टूटने लगता है। अगर विवाद बढ़ जाए, तो यह तलाक की कगार तक पहुंच सकता है। कई मामलों में, यह प्रक्रिया तेज़ी से पूरी हो जाती है, और तलाक के बाद पत्नी अपने गुजारे के लिए भरण-पोषण की मांग करती है।
कोर्ट में मामला पहुंचने पर पति को पत्नी की आर्थिक मदद के लिए गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया जाता है। इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट ने गुजारा भत्ते की एक सीमा तय की है। आइए, समझते हैं इस सीमा और इससे जुड़े एक हालिया मामले को।
क्या है मामला?
अगर कोई व्यक्ति अत्यधिक संपत्ति का मालिक है, तो उसके लिए शादी और तलाक दोनों ही बेहद महंगे साबित हो सकते हैं। हाल ही में ऐसा ही एक मामला सामने आया, जिसमें भारतीय मूल के एक अमेरिकी व्यक्ति को अपनी पहली पत्नी को 500 करोड़ रुपये का गुजारा भत्ता देना पड़ा। इसके बाद, सुप्रीम कोर्ट ने उसकी दूसरी पत्नी को भी 12 करोड़ रुपये देने का आदेश दिया।
यह मामला इस ओर इशारा करता है कि संपन्न व्यक्तियों के लिए कानूनी विवाद और उनके परिणाम कितने खर्चीले हो सकते हैं।
दूसरी पत्नी के दावे पर कोर्ट की प्रतिक्रिया
मामले में यह पाया गया कि व्यक्ति की दूसरी शादी केवल एक साल चली। जुलाई 2021 में हुई इस शादी में जल्द ही रिश्तों में दरार आ गई। पति ने तलाक के लिए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। दूसरी ओर, पत्नी ने अदालत से मांग की कि उसे पति की पहली पत्नी के बराबर गुजारा भत्ता दिया जाए।
इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ऐसा करना उचित नहीं है। संपत्ति और भत्ते को लेकर महिला की मांग पर आपत्ति जताते हुए जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि भरण-पोषण का मकसद पत्नी की गरिमा, जरूरतें और सामाजिक सुरक्षा सुनिश्चित करना है, न कि संपत्ति के बराबर राशि देना।
कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणी
जस्टिस नागरत्ना ने अपने 75 पन्नों के फैसले में कहा कि अक्सर लोग अपने साथी की संपत्ति और आय का खुलासा कर बड़ी रकम की मांग करते हैं। उन्होंने पूछा, “जब पति और पत्नी की संपत्ति अलग हो जाती है, तो संपत्ति के बराबर भरण-पोषण की मांग क्यों की जाती है?”
सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पत्नी को वही जीवन स्तर मिलना चाहिए, जो वह शादी के दौरान जी रही थी। लेकिन, पति पर यह दबाव नहीं डाला जा सकता कि अगर उसका आर्थिक स्तर बेहतर हो गया है, तो वह पत्नी को भी उसी लाभ में शामिल करे।
महिलाओं के लिए कोर्ट की सलाह
न्यायाधीशों ने महिलाओं को आगाह किया कि कानून उनके कल्याण के लिए बनाए गए हैं, न कि पतियों को दंडित करने या उनसे पैसे वसूलने के लिए। महिलाओं को यह समझने की जरूरत है कि इन कानूनों का उद्देश्य केवल उनके अधिकारों और गरिमा की रक्षा करना है।
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला इस बात को रेखांकित करता है कि कानून का इस्तेमाल केवल जरूरतमंदों की मदद के लिए होना चाहिए। रिश्तों और अधिकारों के बीच संतुलन बनाए रखना न केवल समाज के लिए, बल्कि परिवारों के लिए भी महत्वपूर्ण है।