साल 2016 में दिल्ली हाई कोर्ट ने एक आदेश सुनाया था, जिसमें कहा गया कि माँ बाप की मर्जी के बिना बेटा बेटी या कोई भी रिश्तेदार उनके घर और उनकी संपत्ति में जबरदस्ती नहीं रह सकता है और न ही कोई मालिकाना हक़ जमा सकता है। बेटा – बेटी भले ही विवाहित हो या अविवाहित, उसे घर में रहने के लिए माँ बाप की पूर्ण सहमति होना जरुरी है।
साल 2010-11 में जब ऐसे केसेस की संख्या तेजी से बढ़ने लगी तब भारतीय सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट ने इस पर संज्ञान लेते हुए कुछ कठोर निर्णय सुनाये। जिसमें कहा गया कि यदि बेटा, बेटी, बहू, दामाद या अन्य रिश्तेदार माँ-बाप या बुजुर्गों को ठीक से नहीं रखता है, उनको खाना समय पर नहीं देता है, चिकित्सीय सुविधा उपलब्ध नहीं कराता है, उनके साथ कोई मार पीट करता है या उनके साथ किसी भी तरह का दुर्व्यवहार करता है, तो माँ बाप जब चाहें अपने उस रिश्तेदार या बच्चे को घर से बेदखल कर सकते हैं। इसके साथ-साथ वो वसीयत से भी अधिकार छीन सकते हैं, अगर वसीयत पहले से बनी हुई है तो उसमें बदलाव का प्रावधान भी बुजुर्गों को दिया गया है।
साल 2017 में भी दिल्ली के एक केस में कोर्ट ने इसी तरह का आदेश सुनाया था, जिसमें कहा गया था कि अगर संतान का व्यवहार अपने माता – पिता के प्रति ठीक नहीं है तो वे जब चाहें तब उन्हें बेदखल कर सकते हैं फिर चाहे वह प्रॉपर्टी माँ-बाप की बनाई हुई हो, किराए की या पैतृक जिस पर मालिकाना हक़ बुजुर्गों का हो।
बच्चों को माँ बाप की संपत्ति पर पूरा हक़ कब मिलता है ??
माँ-बाप जीवित रहते हुए जब चाहें तब अपने बच्चों को वसीयत से बेदखल कर सकते है, लेकिन उनके मरने के बाद बच्चे उनकी प्रॉपर्टी पर अपना हक़ ले सकते हैं बशर्ते माँ बाप उसे दान करके न गए हों। लेकिन दादा परदादा के मालिकाना हक़ वाली संपत्ति में माँ-बाप हस्तक्षेप नहीं कर सकते हैं।
दूसरी शादी के बच्चों को भी पूरा हक़ मिलता है ?
हिन्दू मैरिज एक्ट के तहत पहली पत्नी के जीवित रहते हुए बिना तलाक़ दिए दूसरा विवाह वैद्य नहीं है, किन्तु पहली पत्नी के मृत्यु पश्चात् दूसरी शादी के बच्चों को पिता की संपत्ति में पूरा हक़ मिलता है।
माँ बाप से फ़र्ज़ी हस्ताक्षर को चुनौती दी जा सकती है ?
पिता को बहलाकर या पिता की मृत्यु पश्चात् माँ को फुसलाकर किसी एक संतान ने अगर हस्ताक्षर करा लिए हैं तो उसे दूसरी संतानों द्वारा कोर्ट में पूर्ण रूप से चुनौती दी जा सकती है।
पिता ने खुद की बनाई संपत्ति अगर दान में दे दी तो उसका क्या किया जाए?
अगर पिता ने अपनी बनाई संपत्ति को अपने जीवित रहते हुए किसी अन्य को दान में या उपहार स्वरुप दे दी तो वारिस उस पर मालिकाना हक़ नहीं जमा पाएंगे। हालाँकि इसके लिए गिफ्ट डीड बनता है अगर वह नहीं है तो वारिस उसे चुनौती दे सकते हैं।