Income Tax Slabs: शादीशुदा और कुंवारे लोगों की इनकम टैक्स नियम में हुआ बदलाव, यहां देखें किसे मिलेगा ज्यादा छूट। देश में जितने भी कुंवारे और शादीशुदा लोग है उन्हें इतना तो अवश्य मालूम होना चाहिए कि इनकम टैक्स डिपार्टमेंट की तरफ से टैक्स में उसे कितनी छूट मिलती है।
इनकम टैक्स के तहत करदाताओं के लिए अलग-अलग व्यवस्थाएं निर्धारित की गई हैं। नियमानुसार टैक्स स्लैब भी बनाए गए हैं। इनमें समय-समय पर बदलाव भी होते रहते हैं।
देश में इनकम टैक्स व्यवस्था के तहत विवाहित और अविवाहित लोगों के लिए कुछ विशेष नियम बनाए गए थे। आईये नीचे जानते हैं इनकम टैक्स को लेकर अब तक कौन कौन से बड़े बदलाव किए गए हैं।
भारत में पहला बजट
आजादी के बाद से आयकर के मामले में अलग-अलग सरकारें आईं और सभी सरकारें ने इनकम टैक्स व्यवस्था में बदलाव किए, जिनका असर आम जनता पर पड़ा। आजाद भारत का पहला बजट 16 नवंबर 1947 को पेश किया गया था।
इसे पहले वित्त मंत्री आरके शनमुखम चेट्टी ने संसद में रखा। इस बजट में देश की आर्थिक स्थिति पर विस्तृत चर्चा की गई और यह दिखाया गया कि भारत की आर्थिक दिशा क्या होनी चाहिए। इससे भारत के विकास की दिशा को स्पष्ट किया गया था।
1947 में टैक्स फ्री लिमिट थी इतनी
आजादी के समय टैक्स फ्री लिमिट 1947 में जब भारत को आज़ादी मिली, तब टैक्स फ्री लिमिट सिर्फ 1500 रुपये थी। इसका मतलब यह था कि जिनकी सालाना आय 1500 रुपये से कम थी, उन्हें आयकर नहीं देना पड़ता था। यह उस समय के हिसाब से ठीक था, लेकिन आज के दौर में लाखों रुपये की कमाई पर भी छूट बहुत कम है, और अब इस सीमा को बढ़ाने की आवश्यकता महसूस हो रही है।
1955 में टैक्स फ्री लिमिट
साल 1955 के आते-आते सरकार ने शादीशुदा व्यक्तियों के लिए टैक्स फ्री लिमिट 2000 रुपये और कुंवारों के लिए 1000 रुपये कर दी थी। यह उस समय के हिसाब से ठीक था और लोगों को राहत मिली थी, जिससे आर्थिक स्थिति में कुछ सुधार आया था। समय अनुसार इस व्यवस्था में भी बदलाव होता गया।
1958 में बच्चों की संख्या पर थी टैक्स छूट
1958 में बच्चों की संख्या पर टैक्स छूट दी जाती थी। अगर किसी व्यक्ति के पास एक बच्चा था, तो उसे 3300 रुपये तक की आय पर टैक्स नहीं देना पड़ता था। दो बच्चों वाले व्यक्तियों के लिए यह सीमा 3600 रुपये तक थी, जो एक महत्वपूर्ण कदम था। तब भारत पहला ऐसा देश था जिसने बच्चों की संख्या के हिसाब से टैक्स छूट देने की शुरुआत की।
1973-74 में सबसे ज्यादा थी आयकर दर
1973-74 में सबसे ज्यादा आयकर दर 1973-74 में भारत में आयकर की दर बहुत अधिक थी, जो 85 प्रतिशत तक पहुंच गई थी। अगर किसी की आय ज्यादा होती थी, तो उसे लगभग पूरी आय सरकार को देनी पड़ती थी। यह बहुत कठिन टैक्स सिस्टम था, लेकिन बाद में इसे कम किया गया, जिससे करदाताओं को राहत मिली।
उस समय सरचार्ज मिलाकर यह दर 97.75 फीसदी तक हो जाती थी। तब 100 रुपये की आय पर 2.25 रुपये ही बचते थे, बाकी के 97.75 रुपये तो सरकार वसूल लेती थी। हालांकि बाद के दौर में विभिन्न सरकारों ने लोगों पर आयकर भार कम करने के लिए बड़े कदम उठाए।
नौकरीपेशा के लिए टैक्स फ्री लिमिट
2024-25 में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से कई ऐलान किए गए और टैक्स व्यवस्था में कई बदलाव आए। नौकरीपेशा के लिए टैक्स फ्री लिमिट 2024-25 के बजट के अनुसार, अब नौकरीपेशा लोगों के लिए टैक्स फ्री लिमिट 7 लाख 75 हजार रुपये तक कर दी गई है। इसमें स्टैंडर्ड डिडक्शन की 75,000 रुपये की छूट दी गई यानी यह राशि घटाने के बाद उसकी आमदनी 7 लाख रुपये रह जाती है।
इसका मतलब यह है कि अगर किसी की सालाना आय 7 लाख 75 हजार रुपये तक है, तो उसे कोई आयकर नहीं देना होगा। इससे मध्यमवर्गीय परिवारों को राहत मिल रही है। नई टैक्स रिजीम में सात लाख रुपये तक की आमदनी टैक्स फ्री है। इसके अनुसार 64000 वेतन पाने वाले को नई कर प्रणाली में कोई टैक्स नहीं देना पड़ता। यह बहुत बड़ी राहत है।
बजट 2025 से उम्मीद
बजट 2025 में क्या हो सकता है? विशेषज्ञों का कहना है कि बजट 2025 में सरकार को आयकर की सीमा बढ़ाकर 10 लाख रुपये तक करनी चाहिए। इससे लोगों को और राहत मिल सकती है और देश की अर्थव्यवस्था भी बेहतर हो सकती है। इस कदम से सरकार को टैक्स संग्रहण में भी वृद्धि हो सकती है।
2023-24 के बजट के लिए यह किया था ऐलान
2023-24 के बजट भाषण में वित्त मंत्री ने आयकर का दायरा बढ़ाने की बात कही थी। इंडिविजुअल टैक्सपेयर के लिए ऐलान करते हुए आयकर सीमा नई टैक्स रिजीम में पांच लाख रुपये से बढ़ाकर सात लाख रुपये कर दिया गया था। सुपर रिच टैक्स को भी घटाकर 37 प्रतिशत हुआ और रिटायर्ड कर्मचारियों को भी लिव इनकैशमेंट की बड़ी सौगात दी गई। इसमें इजाफा कर 25 लाख रुपये किया था।
नई टैक्स रिजीम में रखी यह व्यवस्था
देश में नई टैक्स व्यवस्था अप्रैल 2020 से लागू हो चुकी है। हालांकि नई टैक्स रिजीम के तहत 2023-24 में सरकार ने नई टैक्स रिजीम को डिफॉल्ट कर दिया। इसमें आयकर की दरों को बदला गया और टैक्स स्लैब तय किए गए, लेकिन पहले जैसी छूट और डिडक्शन्स नहीं दी गईं। यह सिस्टम सरल है, लेकिन इसमें टैक्स बचाने के विकल्प कम हो गए हैं, जो कुछ लोगों को असुविधाजनक लग सकते हैं।