Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य अर्थशास्त्र, समाजशास्त्र, राजनीति शास्त्र, नीतिशास्त्र और दर्शनशास्त्र के प्रकांड पंडित थे। अपनी नैतिक उक्तियों में आचार्य ने मानव जीवन के कुछ अकाट्य तथ्यों का उल्लेख किया है जिनका अनुसरण करके एक सभ्य और सशक्त समाज का निर्माण किया जा सकता है।
आचार्य ने अपनी नीतिगत उक्तियों में “काल” की विशद व्याख्या की है। आचार्य का मानना है कि मानव जीवन के भूत, वर्तमान और भविष्य में काल ऐसा सत्य है जिसे न कोई नष्ट कर सकता है और ना ही अपनी इच्छा अनुसार बदल सकता है। आचार्य की निम्न उक्ति में काल को सर्वथा शक्तिशाली और कभी न मिटने वाला कहा गया है।
काल: पचति भूतानि काल: संहरते प्रजा:।
काल: सुप्तेषु जागर्ति काले हि दुरतिक्रम:
ऊपर उद्धृत श्लोक का अर्थ है :-
काल समस्त प्राणियों को निगल सकता है। संपूर्ण सृष्टि का विनाश कर सकने में समर्थ है काल। सोए हुए मनुष्य में भी काल विद्यमान रहता है। अतः काल का अतिक्रमण करने में कोई भी समर्थ नहीं है। आचार्य चाणक्य ने अपने नीतिशास्त्र में काल को सर्व शक्तिशाली घोषित किया है।
व्यक्ति चाह कर भी काल के आभामंडल से बच नहीं सकता। समस्त सृष्टि को अपने में समा लेने की क्षमता रखता है काल। कभी-कभी ऐसा भी होता है कि मात्र एक क्षण में व्यक्ति काल कवलित हो जाता है। पूरी सृष्टि काल से ही नियंत्रित है। काल का सामना करने की क्षमता किसी में भी नहीं है।
काल बिना शस्त्र का विजेता होता है। रामायण से लेकर महाभारत तक के समस्त घटना क्रम काल से ही आबद्ध थे। सर्वशक्तिशाली रावण भी अपराजेय काल से अपने को बचा नहीं पाया। अतः आचार्य चाणक्य ने अपनी नीतिगत उक्ति में मानवता को यह संदेश दिया है कि काल कभी भी कहीं भी आ सकता है। इसलिए इस अनिश्चित और छोटी सी जीवन में सबसे प्रेम करना चाहिए ताकि स्वयं भी खुश रहें और दूसरों को भी खुशियां बांट सकें।