Property Law: मां के द्वारा अर्जित संपत्ति का वारिस कौन हो सकता है? जानिए क्या कहता है कानून

Property Law: भारतीय कानून में परिवार के हर व्यक्ति को पारिवारिक संपत्ति में अधिकार दिया गया है। अमूमन पिता की मृत्यु होने पर उसकी सम्पत्ति का उसकी पत्नी वह बच्चों में समान रूप से बंटवारा होता है। प्रायः जब संपत्ति बंटवारे की बात होती है तो पिता की संपत्ति का ही जिक्र होता है व मां द्वारा अर्जित संपत्ति की चर्चा नहीं होती पर ऐसा नहीं है, आज के समय में महिलाएं स्वयं समर्थ हैं और वह अपनी योग्यता वह मेहनत से घर, गाड़ी व अन्य चल अचल संपत्ति खरीद रही हैं।

Property Law

ऐसे में जाहिर है कि उनकी मृत्यु के बाद उनकी इस संपत्ति का कोई ना कोई तो वारिस होगा ही। अतः यह जानकारी हम सभी को होनी चाहिए। आज के आलेख में हम आपको मां की संपत्ति पर अधिकार के विषय की महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराएंगे।

कौन हो सकता है मां की संपत्ति का दावेदार?

भारतीय कानून के अनुसार ऐसी महिला जिसके द्वारा स्वयं अर्जित संपत्ति हो या उसे पति, पिता या मां से उत्तराधिकार में मिली हो तो उसकी संपत्ति पर उसके जीवित रहते उसके पुत्र या पुत्री किसी तरह का दावा नहीं कर सकते अर्थात् अपनी संपत्ति पर उसका एकाधिकार माना जाएगा।

मां अपनी इच्छा से अपनी वसीयत किसी के नाम भी कर सकती है। पर ऐसा भी संभव है कि महिला की मृत्यु वसीयत तैयार करने के पहले ही हो जाए तो ऐसी स्थिति में हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के अनुसार उसके बच्चों सहित परिवार के प्रथम श्रेणी के उत्तराधिकारियों में उसकी संपत्ति का बराबर बराबर बंटवारा होगा।

विवाहित बेटी का संपत्ति पर अधिकार

हिंदू उत्तराधिकार कानून 1965 के तहत पिता की संपत्ति में विवाहित बेटियों का बराबर का हक माना गया है, ठीक वैसे ही मां की संपत्ति में भी उनको वैसा ही अधिकार प्राप्त है। यदि बिना वसीयत लिखें भी मां की मृत्यु हो जाती है तो विरासत के कानून 1965 के अधिनियम अनुसार शादीशुदा बेटी को बेटे के समान ही मां की संपत्ति में हिस्सा मिलेगा।

ये लोग हैं मालिकाना हक के उत्तराधिकारी

भारतीय कानूनी नियमों के अनुसार मां की चल और अचल संपत्ति में पति, बेटा, बेटी (विवाहित या अविवाहित), बेटी और बेटों की बच्चों का समान रूप से अधिकार होता है।

महिला के अविवाहित होने की स्थिति में?

ऐसा भी संभव है कि किसी महिला ने विवाह न किया हो तथा उसके पास उसकी अर्जित संपत्ति हो तो ऐसी स्थिति में भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925 की धारा 42 व 43 के अनुसार उसकी संपत्ति के वारिस उसके जीवित पिता होंगे। किंतु पिता की मृत्यु हो चुकी हो तो उसकी संपत्ति का मां व उसके भाई बहनों में समान रूप से बंटवारा होगा।

आपकी जानकारी के लिए बता दें कि धार्मिक आधार पर उत्तराधिकार का बंटवारा व्यक्तिगत नियमों से संचालित होता है। लेकिन शादीशुदा बेटी के उत्तराधिकार सभी व्यक्तिगत कानून में भी निहित हैं। मुस्लिम लॉ में महिलाओं का अधिकार पुरुषों की तुलना में आधा होता है तथा भिन्न-भिन्न रिश्तो में उत्तराधिकार की मात्रा का प्रतिशत भी अलग-अलग रूप से तय है।

WhatsApp चैनल ज्वाइन करें