Supreme Court Decision: क्या बिना अनुमति के सास-ससुर के घर में रह सकती है बहू, इस पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया बड़ा फैसला

Supreme Court Decision: भारत में ऐसे कई मामले सामने आते थे जिसमें सास ससुर द्वारा बहू को प्रताड़ना दी जाती थी। लेकिन पिछले कुछ सालों में ऐसे भी कई मामले सामने आए हैं जिसमें बहू द्वारा अपने बुजुर्ग सास-ससुर को प्रताड़ित किया जा रहा है। ऐसे में बुजुर्ग माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों को भरण पोषण और संरक्षण देने के लिए सरकार द्वारा जो कानून लाया गया है वह बुजुर्गों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले लोगों को सबक सिखा सकता है।

Supreme Court Decision

हाल ही में एक मामला सामने आया है जिसमें एक बुजुर्ग ने इस कानून के तहत अपनी बहू पर सताने और प्रताड़ित करने का आरोप लगाते हुए घर से बाहर निकालने की मांग की थी। एसडीएम ने अर्जी पर संज्ञान लेते हुए बहू को घर खाली करने का आदेश दिया था जिसके खिलाफ बहू ने पहले हाईकोर्ट में और फिर सुप्रीम कोर्ट दोनों में ही अर्जी लगाई।

लेकिन दोनों ही न्यायालयों में वरिष्ठ नागरिकों के भरण पोषण और कल्याण कानून के तहत बहू को घर खाली करने के आदेश को रद्द नहीं किया गया। आज के आलेख में हम आपको वरिष्ठ नागरिकों के प्रति संवेदनशील न्यायिक व्यवस्था के एक महत्वपूर्ण निर्णय की जानकारी से अवगत कराएंगे।

ससुर ने न्यायालय के माध्यम से बहू दिया ये विकल्प

सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के दौरान ससुर की ओर से ही बहू को उसी के दूसरे फ्लैट में रहने का विकल्प दिया गया जिसे कोर्ट द्वारा एक अच्छा प्रस्ताव मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बहू को आदेश दिया कि वह अपनी बेटी के साथ दूसरे फ्लैट में रहे और सास ससुर की जिंदगी में किसी भी प्रकार की कोई दखलंदाजी न करें। साथ ही कोर्ट ने उसे यह भी निर्देश दिया कि उस फ्लैट में अपने माध्यम से वह तीसरे पक्ष का किसी भी रूप में कोई कानूनी अधिकार भी सृजित नहीं करेगी।

इसके बाद बहू को ससुर का घर खाली करना पड़ा। यह आदेश न्यायमूर्ति इंदिरा बनर्जी और अभय एस ओका की पीठ द्वारा उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दाखिल बहू की याचिका का निपटारा करते हुए 24 जनवरी को सुनाया गया था। उत्तराखंड के हरिद्वार में सेवा निवृत्ति सी. पी. शर्मा ने माता-पिता को वरिष्ठ नागरिक भरण पोषण और कल्याण कानून के तहत एसडीएम के समक्ष अर्जी देकर अपनी बहू पर उन्हें सताने और प्रताड़ित करने का आरोप लगाया और साथ ही उनसे आग्रह किया की बहू को उनके घर से बाहर निकाला जाए।

एसडीएम ने अर्जी स्वीकार करते हुए बहू को 30 दिन में घर खाली करने का आदेश दिया जिसके बाद बहू ने हाईकोर्ट में याचिका दी और आदेश रद्द करने की मांग भी की। बहू ने कहा कि उसका पक्ष सुने बगैर ही ये आदेश दिया गया है तथा एसडीएम को इस प्रकार का आदेश देने का कोई अधिकार नहीं है। बहू ने पति के साथ चल रहे हैं वैवाहिक झगड़े का हवाला देते हुए सास ससुर पर सताने का आरोप भी लगाया था।

उसका कहना था कि वह बहू होने के नाते इस घर की सदस्य है अतः उसे इसी घर में रहने का कानूनी अधिकार है। मामले की सुनवाई के बाद हाई कोर्ट ने बहू की याचिका खारिज कर दी। हाई कोर्ट ने माता-पिता और वरिष्ठ नागरिकों को संरक्षण देने के कानूनी उद्देश्य का जिक्र किया जिसमें संरक्षण के लिए उचित तंत्र लागू करने की बात है। इस कानून की धारा 23 में ट्रिब्यूनल को वरिष्ठ नागरिक की संपत्ति के बारे में आदेश देने का भी अधिकार है।

हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट ने बहू की याचिका को माना अनुचित

हाई कोर्ट व सुप्रीम कोर्ट दोनों ने ही बहू की अर्जी को खारिज कर दिया और एसडीएम के आदेश को सही करार देते हुए बहू को अपनी 8 वर्षीय बेटी के साथ दूसरे फ्लैट में रहने का विकल्प दिया जिसे कोर्ट द्वारा एक बेहतरीन विकल्प माना गया। इस प्रस्ताव को बहू ने भी स्वीकार कर लिया।

हालांकि इसके बाद बहू ने यह बात सामने रखी कि उसके फ्लैट से बच्चे का स्कूल दूरी पर है और वहां से आने जाने का खर्च ज्यादा होगा जिस पर हाई कोर्ट द्वारा स्कूल आने-जाने का अतिरिक्त खर्च अपने पति से मांगने का आदेश दिया गया। महिला का पति नोएडा में नौकरी करता है और वहीं रहता है तथा शेष परिवार हरिद्वार में रहता है।

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