यह तो हम सब जानते हैं कि अगर महिलाएं कुछ करने के लिए ठान लें तो उसे पूरा करके ही दम लेती है। ऐसे ही कुछ महिलाओं में से बिजनेस वूमेन ममता भी है जिन्होंने सिर्फ 1500 रुपए की लागत से अपना बिजनेस शुरू किया था और आज उनका कारोबार 3 करोड़ तक पहुंच गया है।
ममता के अलावा भी इस दुनिया में बहुत सारी ऐसी महिलाएं हैं जिन्होंने अपनी जिंदगी में बड़ी मुकाम हासिल की है तो चलिए हम आपको ममता की संघर्ष की कहानी बताते हैं ताकि आप भी अपनी जीवन में कुछ बड़ा मुकाम हासिल कर सके।
ममता का बिजनेस तथा उसकी संघर्ष की कहानी
समाज में आज भी कुछ ऐसी महिलाएं हैं जो अपने नाम से नहीं बल्कि काम से जानी जाती है और उन्हीं में से एक बिजनेस वुमन ममता भी है। ममता एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने अपने परिवार की अतिरिक्त आय के लिए पति का साथ दिया और आज वह एक बड़ी बिजनेस वुमन बन चुकी है।
दरअसल, ममता ने कई सालों पहले अपने घर में गरीबी के कारण काम करने की सोची थी। ममता एक ग्रेजुएट महिला है इसलिए उन्होंने अपनी पढ़ाई का इस्तेमाल कुछ काम करके परिवार की आर्थिक सहायता करने की सोची। ममता की काम पर जाने से पति संजय पांडे भी सहमत हो गए, फिर उन्होंने किसी एक संस्था में जाकर 4000 प्रतिमाह की वेतन के साथ काम करना शुरू कर दिया।
ममता काम पर जाने लगी और दूसरे दिन में उन्हें अपने 9 माह के बच्चे को भी काम पर साथ लाना शुरू कर दिया। ऐसे में वहां के अन्य कर्मचारियों ने बच्चों के पालन पोषण और काम को एक साथ करने की अनुमति नहीं दी, जिससे ममता को अपने बच्चे को घर पर छोड़कर ही बाहर काम करने के लिए आना पड़ा। लेकिन ममता काफी बेचैन रहती थी और वह सोचती थी कि बच्चे को ममता से वंचित करना सही नहीं है इसीलिए उन्होंने काम करना छोड़ दिया।
सिर्फ 1500 रुपये से शुरू की बिजनेस
हालांकि ममता घर पर बैठकर यह सोचती थी कि अतिरिक्त आय आना जरूरी है। तभी ममता को ख्याल आया कि कई बार मिठाई के डब्बे मनाते हुए देखे हैं तो ऐसे में उन्हें मिठाई के डब्बे बनाने की बिजनेस का ख्याल आया और उन्होंने घर पर पड़ी अपनी साइकिल से बाजार बाहर निकल कर कच्चे माल खरीदने का प्लान बनाया। फिर वहां जानकर उन्होंने 1500 रुपये का कच्चा माल ख़रीदा।
जब वह कच्चे माल को खरीद कर लाई तो 8 घंटे में 100 मिठाई के डिब्बे तैयार किए और इस तैयारी में उन्हें बहुत खुशी भी हुई। इन मिठाई के डिब्बों को लेकर वो बाजार में गई। वह भी बिना किसी मार्केटिंग तजुर्बे के, लेकिन बाजार में उनके डिब्बों को किसी ने नहीं खरीदा।
हालांकि ममता ने किसी तरह अपना लाभ और लागत को निकालकर इन मिठाई के डिब्बों को बेच दिया। फिर कुछ समय बाद ममता को पता चला कि लखनऊ में कच्चे माल सस्ते दामों पर उपलब्ध हो जाते हैं और जब यह जानकारी मिली तब ममता ने अपनी बचत के 35000 रूपए लेकर लखनऊ जाने का फैसला किया।
लखनऊ में उन्होंने देखा कि पूरे माल के लिए ₹200000 लगेंगे, लेकिन उन्होंने कुछ कच्चे माल के लिए ₹15000 का कच्चा माल खरीद लिया और बस से घर आ गई। मिठाई का डिब्बा तैयार करने के साथ-साथ उन्हें कच्चे माल के लिए अतिरिक्त पूंजी जमा करने पर ध्यान था।
उस दौरान वो वह सोच रही थी कि किसी तरह लोन मिल जाए, लेकिन पति की सरकारी नौकरी के चलते उन्हें लोन मिलने में काफी दिक्कतें आ रही थी। इसके साथ ही उन्होंने अपने गहनों को गिरवी रखकर ₹300000 का गोल्ड लोन लिया। इसके बाद एक मालगाड़ी में लखनऊ से कच्चा माल लाई। उसके बाद उन्होंने तैयार डिब्बों को जब मार्केट में बेचा तो अच्छा मुनाफा हासिल हुआ, जिससे उनका हौसला बढ़ा।
अब उन्होंने कच्चे माल के लिए दिल्ली की तरफ रुख किया जहां पर उन्हें ब्याज के आधार पर कच्चा माल उपलब्ध होने लगा। अब तक वह अपने घर से ही काम करती थी, लेकिन धीरे-धीरे जगह कम पड़ने लगी। उसके बाद उन्होंने अपने कारखाने के लिए ₹3500000 का लोन लिया। इसके अलावा ममता ने कारोबार को बढ़ाने के लिए ₹5000000 का अतिरिक्त लोन भी लिया था।
ममता ने पहले तैयार मिठाई के डिब्बों की डिलीवरी के लिए साइकिल का इस्तेमाल किया। लेकिन वर्तमान में ममता मिठाई के डिब्बों के लिए टेंपू और बैटरी से स्वचालित ऑटो रिक्शा का इस्तेमाल करती है। हालांकि ममता ने डिलीवरी के लिए काम पर लोगों को लगाया हुआ है और उनके पास खुद के वाहन के रूप में एक स्कूटी और कार उपलब्ध है।
वर्तमान में पूर्वांचल के शहर की हर बड़ी दुकान ममता को भेजने से जुड़ी हुई है और अब उनके बच्चे भी बड़े अच्छे स्कूल में पढ़ रहे हैं। ममता ने अपने इस बिजनेस से 100 से अधिक पुरुषों और महिलाओं को रोजगार उपलब्ध कराया है। इसके साथ ही वह दिव्यांग महिलाओं और पुरुषों की भी मदद करती है जिसके तहत घर पर कच्चा माल भेज देती है ताकि वह माल तैयार करके उन्हें दे दें तथा वह घर से ही बिजनेस कर सके।