Mahabharat Katha: महाभारत के युद्ध में श्री कृष्ण ने अर्जुन का सारथी बनकर उन्हें और पूरी दुनिया को ज्ञान का मार्ग दिखाया था। जब रणभूमि में अर्जुन अपने भाइयों, गुरु और सभी आदरणीय जनों को देखकर युद्ध करने के निर्णय से पीछे हट रहे थे और अपने शस्त्र जमीन पर रख दिए थे तो श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का ज्ञान देकर उन्हें निजी संबंधों से ऊपर उठकर न्याय के मार्ग का चयन करने के लिए प्रेरित किया था।
हम सभी जानते हैं कि कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर श्री कृष्ण ने शस्त्र नहीं उठाए थे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि श्री कृष्ण की नारायणी सेवा जिसमें 10 लाख सैनिक थे वह पांडव के साथ नहीं बल्कि कौरवों के साथ लड़ी थी? क्या कारण था कि श्री कृष्ण की नारायणी सेना कौरवों के पक्ष में लड़ी?
दुर्योधन श्री कृष्ण के पास पहुंचे अपने पक्ष से युद्ध लड़ने का प्रस्ताव
महाभारत की कथा के अनुसार जब कौरव और पांडव के बीच युद्ध तय हो गया था तो दोनों ही पक्ष अपनी शक्ति को बढ़ाने के लिए महान योद्धाओं के पास जाकर अपनी तरफ से लड़ने का प्रस्ताव भेज रहे थे और इसी के चलते दुर्योधन और अर्जुन दोनों ही श्री कृष्ण को अपनी ओर से लड़ने का प्रस्ताव लेकर द्वारिका नगरी पहुंचे।
दुर्योधन किसी भी तरह अपने हाथों से यह अवसर नहीं गवांना चाहता था इसलिए वह अर्जुन से पहले ही द्वारिका पहुंच गया। दुर्योधन के द्वारिका पहुंचने के कुछ ही समय बाद अर्जुन भी श्री कृष्ण के महल पहुंच गए लेकिन श्री कृष्ण तब अपने कक्ष में सो रहे थे।
जब श्री कृष्ण गहरी निद्रा में सो रहे थे, दुर्योधन कृष्ण के कक्ष में पहुंचा, तभी उसके मन में एक अहंकार की भावना जागृत हुई और वह सोचने लगा कि मैं भला किसी ग्वाले के चरणों में क्यों बैठूं? यह सोचकर दुर्योधन श्री कृष्ण के सिरहाने रखे एक सिंहासन पर बैठ गया। तभी अर्जुन ने भी कक्ष में प्रवेश किया दुर्योधन को पहले से कक्ष में बैठा देखकर अर्जुन श्री कृष्ण के चरणों के पास बैठकर उनके जागने का इंतजार करने लगे।
दुर्योधन ने कृष्ण की नारायणी सेना को अपने पक्ष में युद्ध के लिए मांगा
जब श्री कृष्ण नींद से जागे तो उनकी नजर सबसे पहले अपने चरणों के पास बैठे हुए अर्जुन पर पड़ी जबकि सिर के पास बैठे दुर्योधन को उन्होंने बाद में देखा। दुर्योधन ने जब श्री कृष्ण को नींद से जगा हुआ पाया तो उन्होंने बिना किसी अभिवादन के कृष्ण से कहा आपको कौरवों की तरफ से युद्ध करना होगा। मैं युद्ध का प्रस्ताव लेकर सबसे पहले आपके पास आया हूं।
अर्जुन मुझसे बाद में आया है। दुर्योधन की बात सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुराए और उन्होंने कहा कि मुझे नहीं पता कि पहले यहां कौन आया है, मैं निद्रा से जागा तो मेरी नजर सर्वप्रथम अर्जुन पर पड़ी इसलिए मुझे तुमसे पहले अर्जुन दिखाई दिया। श्री कृष्ण की यह बात सुनकर दुर्योधन को क्रोध आया लेकिन श्री कृष्ण ने पहले ही अपनी मंशा बता दी थी कि वह किसी भी पक्ष की तरफ से शस्त्र नहीं उठाएंगे।
इसके अतिरिक्त कृष्ण बोले मैं शस्त्र नहीं उठाऊंगा लेकिन सारथी बन सकता हूं और मेरी नारायणी सेना को चुनने का विकल्प आप में से एक के पास है तुम बोलो दुर्योधन तुम क्या चाहते हो?
जब श्री कृष्ण ने यह बात कही कि वह किसी भी पक्ष की तरफ से युद्ध में भाग नहीं लेंगे तो दुर्योधन ने झट से उनसे उनकी नारायणी सेना मांगी। दुर्योधन ने सोचा कि यदि कृष्ण शस्त्र ही नहीं उठाएंगे तो उससे बेहतर है कि इनकी नारायणी सेना ही ले ली जाए। अतः दुर्योधन ने कहा कि मैं आपकी नारायणी सेना मांगता हूं। दुर्योधन की बात सुनकर श्री कृष्ण मुस्कुरा दिए और दुर्योधन को नारायणी सेना देने का वचन दे दिया।
फिर अर्जुन ने भी स्वयं के लिए नारायण को मांग लिया
श्री कृष्ण ने दुर्योधन की बात खत्म होने पर अर्जुन से कहा कि नारायणी सेना कौरवों की तरफ से युद्ध करेगी और मैं शस्त्र नहीं उठाऊंगा ऐसे में अर्जुन अब तुम बताओ कि तुम क्या चाहते हो? यह सुनकर अर्जुन ने मुस्कुराते हुए कहा, भ्राता दुर्योधन ने नारायणी सेवा मांगी है लेकिन मैं अपने साथ नारायण को चाहता हूं यानि मैं आपका साथ मांगता हूं।
माधव, आप रणभूमि में शस्त्र नहीं उठाना लेकिन मेरे सारथी बनकर मेरा मार्गदर्शन जरूर करते रहना। अर्जुन के श्रद्धा भरे आग्रह से अभिभूत हो श्री कृष्ण अर्जुन के सारथी बनने के लिए तैयार हो गए, जबकि दूसरी तरफ दुर्योधन अपनी बुद्धिमत्ता और अर्जुन की मूर्खता पर मन ही मन हंस रहा था।
दुर्योधन सोच रहा था कि जब श्री कृष्ण शस्त्र ही नहीं उठाएंगे तो वह रणभूमि में कैसे युद्ध कर सकेंगे? उन्हें रणभूमि में अपने साथ ले जाने का लाभ क्या होगा? दुर्योधन अपनी चालाकी पर गर्व कर रहा था। जब कुरुक्षेत्र की रणभूमि पर महाभारत शुरू हुई तो नारायणी सेवा कौरवों के साथ और पांडवों के विरुद्ध लड़ी। 10 लाख योद्धाओं से सजी नारायणी सेना लेने के बाद भी कौरवों का अंत हुआ और उसी के साथ-साथ दुर्योधन के अहंकार और उसकी चालाकी का भी अंत हो गया।