भारत में जमीन का मुद्दा को लेकर हर दिन लड़ाई झगड़ा और मामले कोर्ट में पेश होते रहते हैं। कई सालों तक कोर्ट में कैसे चलाया जाता है और नतीजे के बाद भी संतुष्टि नहीं मिलती है। हालांकि आपके मन में भी यह सवाल जरूर उठ रहा होगा कि क्या आपकी प्राइवेट प्रॉपर्टी पर सरकार कब्जा कर सकती है या नहीं। सरकार को जब भी रोड या किसी शहर के विकास के लिए जमीन की जरूरत होती है तो वह ऐसे में लोगों की प्राइवेट जमीन को खरीदती है।
इसके लिए उसे भुगतान भी करना पड़ता है। लेकिन जब सरकार आपकी जबरदस्ती प्राइवेट प्रॉपर्टी पर अपना हक जमा कर कब्जा कर ले। ये प्रश्न आपके मन में जरूर उठता होगा। हालांकि हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल का जवाब कोर्ट में दिया है।
चीफ जस्टिस डिवाइस चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 9 जजों की बेंच ने टिप्पणी की। हाल ही में मुंबई के प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन समेत कई याचिाकावकर्ताओं से पूछा गया कि संविधान के अनुच्छेद 39 B और 31 c के योजनाओं में आड़ में सरकार निजी संपत्ति पर कब्जा नहीं कर सकती।
सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर गहरी विचार कर रही है क्या निजी प्रॉपर्टी को संविधान के अनुच्छेद 39 बी के तहत समुदाय का भौतिक संसाधन माना जा सकता है या नहीं जिसके जवाब में बेंच ने कहा कि यह सुझाव देना शेखी बघारने जैसा होग। यानी समुदाय के भौतिक संसाधन का मतलब केवल सार्वजनिक संसाधनों से है और किसी व्यक्ति के प्राइवेट प्रॉपर्टी से नहीं है।
इस मसले पर बेंच ने कहा कि अनुच्छेद 39 बी के तहत प्राइवेट फॉरेस्ट पर सरकारी नीतियां लागू नहीं होगी। इसलिए इसे दूर रहें तो बेहतर होगा। यह समाज के लिए बहुत खतरनाक हो सकता है। कोर्ट ने आगे कहा कि जब 1950 में बाबा साहब अंबेडकर द्वारा संविधान बनाया गया था तब इसका मकसद सामाजिक बदलाव से था इसलिए हम ऐसा नहीं कह सकते कि प्राइवेट संपत्ति को सरकार अनुच्छेद 39 बी के दायरे में ले सकती है।
जानकारी के लिए बता दें की सुप्रीम कोर्ट ने नौ जजों की बेंच और मुंबई स्थित प्रॉपर्टी ओनर्स एसोसिएशन की मुख्य याचिका समेत 1992 में याचिका दायर की थी, जिसे 2002 में 9 जून की बेंच पर ट्रांसफर कर दिया गया था।