यद्यपि भारतीय विवाह व्यवस्था अपने आप में धर्म, निष्ठा और कर्तव्य का पर्याय मानी जाती है। पर कभी कभी वैचारिक मतभेद और जीवन की कुछ विशेष परिस्थितियां संबंध विच्छेद का कारण बन जाती हैं। ऐसे में पति पत्नी के बीच अलग होने के अलावा कोई रास्ता नहीं रह जाता। पर इन सब चीजों के बीच बच्चे प्रभावित होते हैं।
भारतीय न्याय व्यवस्था में ऐसी स्थिति में संतान के लिए भी भरण पोषण के लिए पिता को अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करने के निर्देश दिए गए हैं। आज़ के आलेख में हम आपको इस महत्वपूर्ण विषय पर सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए एक फैसले की जानकारी से अवगत कराएंगे।
सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया अहम फैसला
हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने एक बड़ा फैसला सुनाया है, फैसले के मुताबिक किसी शख्स को अपनी पत्नी से तलाक लेने की छूट दी गई लेकिन साथ ही यह भी कहा गया कि बच्चों के साथ कोई तलाक नहीं हो सकता। शीर्ष अदालत ने रत्न व आभूषण व्यापार से जुड़े मुंबई के इस शख्स को चार करोड़ रुपए की समझौता राशि जमा करने के लिए 6 सप्ताह का समय भी दिया। अदालत ने साथ ही संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिली समग्र शक्तियों का प्रयोग करते हुए 2019 से अलग रह रहे इस दंपत्ति के तलाक के कागजों पर वैधानिक मोहर भी लगा दी।
अदालत ने कहा कि व्यक्ति अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है लेकिन बच्चों को तलाक नहीं दे सकता। साथ ही उन्होंने फैसले में कहा कि उन्हें उनकी देखभाल करनी होगी और अपनी बीवी को समझौता राशि देनी होगी ताकि वह अपनी और अपने नाबालिक बच्चों का पालन पोषण यथोचित रूप से कर सके। इसके साथ ही अदालत ने पति को आगामी 1 सितंबर तक एक करोड़ रुपए का भुगतान करने और शेष बचे 3 करोड़ रुपए का भुगतान भी आगामी 30 सितंबर से पूर्व ही कर देने का आदेश दिया है।
खत्म की गई दोनों तरफ की कानूनी प्रक्रियाएं
अदालत द्वारा दंपत्ति की तरफ से शुरू की गई सभी कानूनी प्रक्रियाएं भी खत्म कर दी गईं। अदालत ने कहा कि अलग हो रहे दंपति के बीच समझौते की अन्य सभी शर्तें उनके बीच हुए अनुबंध के अनुसार पूरी की जाएंगी। साथ ही अदालत ने कहा कि अलग होने वाले दंपत्ति को एक लड़का और एक लड़की है और कस्टडी की शर्तों पर दोनों अभिभावकों में पहले ही सहमति हो चुकी है।