भारत में परिवार के बीच लड़ाई झगड़ा होना आम बात है। अक्सर देखा गया है की माता-पिता और बच्चों में लड़ाई झगड़ा होता है। ऐसे में माता-पिता गुस्से में आकर अपने बेटे को प्रॉपर्टी से बेदखल कर देते हैं, जिसकी वजह से औलाद प्रॉपर्टी में अपना हिस्सा का दवा नहीं ठोक सकता है।
जायदाद से बेदखल करने के बाद माता-पिता की संपत्ति में बच्चों का अधिकार नहीं रहता है। हालांकि इस लेख में हम एक ऐसी संपत्ति के बारे में बात कर रहे हैं जिसमें माता-पिता चाह कर भी अपने बच्चों को प्रॉपर्टी से बेदखल नहीं कर सकते हैं। इस लेख में हम इसी प्रॉपर्टी से जुड़ा हुआ पूरा मामला जानने की कोशिश करेंगे।
बता दें की पैतृक संपत्ति में संतान को बेदखल नहीं किया जा सकता है अगर कोई व्यक्ति या माता-पिता आपकी पैतृक संपत्ति में दखलअंदाजी करता है तो आप कोर्ट का दरवाजा खटखटा सकते हैं। ऐसी पूरी संभावना है कि कोर्ट आपके हक में फैसला सुनाएगी। हालांकि कई बार कोर्ट मां-बाप का समर्थन कर देते हैं ये केस और जज के विवेक पर भी कुछ हद तक निर्भर करता है।
क्या होती है पैतृक संपत्ति?
किसी भी इंसान को उसके दादा परदादा से मिली हुई संपत्ति पैतृक कहलाती है। भारतीय संविधान के अनुसार पैतृक संपत्ति कम से कम 4 पुश्त पुरानी होनी चाहिए। इसके अलावा परिवार में कोई बटवारा भी नहीं होना चाहिए। अगर बटवारा हो चुका है तो वह प्रॉपर्टी पैतृक नहीं कहलाएगी। पैतृक संपत्ति में खास बात यह है कि पुत्र और पुत्री दोनों का हक होता है इसके अलावा विरासत में मिली संपत्ति को भी पैतृक संपत्ति नहीं कहा जाता है।
हिंदू उत्तराधिकार कानून के तहत पैतृक संपत्ति के बारे में बात की गई है जिसमें 1956 की धारा 48 और 19 में कहा गया है कि अगर संपत्ति में बंटवारा हो जाता है तो वह पैतृक की जगह खुद से जुटाए गई संपत्ति में बदल जाती है और इस लिहाज से माता-पिता अपने संतान को उसे प्रॉपर्टी से दखल कर सकते हैं।
पैतृक संपत्ति पर किसका हक?
पैतृक संपत्ति में कितना हक किसको मिलेगा ये लोगों की संख्या के ऊपर निर्भर करता है। मान लीजिए आप इकलौते हैं तो पैतृक संपत्ति पूरी आपकी कहलाएगी। लेकिन यदि आपके भाई बहन है तो ये संपत्ति सब में बराबर के हिस्सों में बांटी जाएगी।