Delhi High Court Decision: बहुत से ऐसे पति-पत्नी होते हैं जो कम आमदनी में भी अपना जीवन यापन कर लेते हैं लेकिन कुछ पत्नियां अपने पति पर ज्यादा पैसा कमाने का दबाव बनाती हैं। भारत में कम कमाने वालों की पत्नी कुछ ऐसा ही करती हैं और इससे अक्सर पति मानसिक रूप से कमजोर हो जाते हैं।
अगर आपके साथ भी ऐसा है और आप अपनी पत्नी के ऐसे दबाव से परेशान हैं तो दिल्ली हाई कोर्ट की एक टिप्पणी आपको समझ लेनी चाहिए। इसमें उन्होंने क्या कहा है चलिए आपको बताते हैं।
पत्नी नहीं बनाएंगी पति पर मानसिक दबाव (Delhi High Court New Rule)
दिल्ली हाईकोर्ट ने अपनी टिप्पणी में कहा है कि हैसियत से ज्यादा सपने पूरे करने के लिए पति पर दबाब बनाना मानसिक तनाव के अंतर्गत आता है। जस्टिस ने ये भी कहा है कि पत्नी को किसी व्यक्ति की फाइनेंसियल सीमाएं याद नहीं दिलानी चाहिए। इसके साथ में कोर्ट ने बताया है कि व्यक्ति की जरूरतें, चाहतें और इच्छाएं अलग-अलगग होती हैं उसमें उन्हें सावधानी से रहना चाहिए इसलिए हाई कोर्ट ने एक जोड़े के तलाक को मंजूर करते हुए यह देखा है की यदि पति अपनी आर्थिक सीमा से बाहर के सपने और लक्ष्यों को पूरा करने के लिए जबरदस्ती करता है तो यह शादीशुदा जीवन की खुशी और शांति को भंग करने के लिए मानसिक तनाव पैदा करता है।
क्या है हाई कोर्ट का फैसला?
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि पत्नी अपने पति की हैसियत से ज्यादा की कामना करती है और उसपर दबाव बनाती है तो ये उसपर मानसिक दबाव जैसा समझा जाएगा। हाई कोर्ट ने न्यायिक फैसला देते हुए एक जोड़े के तलाक को मंजूरी दी जिसमें जस्टिस सुरेश कुमार कैत और जस्टिस नीना बंसल कृष्णा ने फैसला सुनाया।
कोर्ट ने पत्नी के व्यवहार को नोटिस करते हुए कहा कि पति को अपनी आर्थिक सीमा से बहार के सपनों को पूरा करने के लिए मानसिक दबाब डाला जाना अपराध है। जिसे कोर्ट में क्रूरता के रूप में माना जाएगा। पत्नी ने फैमिली कोर्ट के उस आदेश को चुनौती दी, जिसमें उसके पति ने उसे क्रूरता के आधार पर उसे तलाक देने की मांग की थी और इस मामले में तलाक के बाद भी एक साल तक वैवाहिक अधिकारों की बहाली नहीं होने के कारण उसे तलाक दे दिया गया था।
कोर्ट ने इस बात पर भी जोर दिया है कि अगर इस तरह के विवाद छोटे-मोटे हो सकते हैं लेकिन इनका समय-समय पर एकत्रित होना व्यक्ति के जीवन में मानसिक तनाव पैदा करने के काम आता है। वो ये कि शादीशुदा संबंध को जीवित रखने के लिए असंभव बना देता है। दिल्ली हाई कोर्ट ने हिन्दू विवाह एक्ट 13 (ए) (ii) के तहत जोड़े को तलाक की मंजूरी दी जा सकती है।