हिंदू धर्म और सनातन परंपरा की पूजा पद्धति का विशेष महत्व व प्रयोजन है। इसीलिए पूजा अर्चना के समय हम जिन चीजों का प्रयोग करते हैं, उनकी दशा और दिशा का विशेष ध्यान देते हैं। भारतीय वास्तु में भी पूजा के कुछ विशेष नियमों के दिशा निर्देश दिए गए हैं जिनका अनुपालन करने से जीवन में सकारात्मक उपलब्धियां अर्जित होती हैं।
प्रायः सभी लोग जब पूजा करने बैठते हैं तो एक आसन विशेष पर बैठकर पूजा करते हैं। यहां विशेष बात यह है कि इस आसन का प्रयोग पूजा या किसी धार्मिक अनुष्ठान के लिए ही किया जाता है। पूजा करने वाला व करवाने वाला दोनों ही आसन पर बैठकर ही किसी धार्मिक अनुष्ठान को संपन्न करते हैं।
साथ ही इस बात का हमेशा ध्यान रखना चाहिए की पूजा के निमित्त बैठने वाला आसन साफ सुथरा होना चाहिए। गंदे या कटे फटे आसन पर बैठकर पूजा करना या करवाना दोनों ही प्रतिकूल परिणाम देने वाला होता है। आज के आलेख में हम आपको पूजा के लिए प्रयुक्त आसनों की उपयोगिता व महत्व की जानकारी देने जा रहे हैं।
किन आसनों को दे प्राथमिकता?
अमूमन पूजा पाठ करते समय या मंत्र जाप के समय कुश के आसन पर बैठना सर्वोत्तम माना जाता है। बहुत से लोग रेशमी या ऊनी वस्त्र से निर्मित आसनों को पवित्र मानते हैं। वहीं कुछ लोग काष्ठ (लकड़ी) की चौकी या घास फूस से बनी चटाई को पूजा के आसन के रूप में प्रयोग करते हैं। भारतीय सनातन परंपरा में इस बात पर विशेष निर्देश है कि पूजा का स्थान तथा आसन रखने वाली जगह हमेशा साफ सुथरी व पवित्र होनी चाहिए।
पूजा के आसन की क्या है उपयोगिता?
भारतीय धार्मिक परंपरा में आसन पर बैठकर पूजा करने के विधान के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण बताए गए हैं :-
1. आसन पर बैठकर पूजा करना अपने इष्ट देवता के प्रति आभार व सम्मान का प्रतीक माना जाता है। आसन पर बैठकर पूजा करने से इच्छित फल की प्राप्ति के साथ जीवन में सुख शांति बनी रहती है।
2. ऐसी भी मान्यता है कि आसन पर बैठकर पूजा करने से चित्त की एकाग्रता बनी रहती है जिसके परिणाम स्वरुप मन में श्रद्धा, पवित्रता व धार्मिकता की प्रबलता कायम रहती है।
3. स्वच्छ स्थान व स्वच्छ आसन पर बैठकर पूजा करने से शरीर वह मन दोनों की पवित्रता बनी रहती है जिसके कारण जप पूजन का इच्छित फल प्राप्त होता है।
4. शरीर व मन की सुख शांति के लिए पृथ्वी व आकाश की ऊर्जा के बीच संतुलन महत्वपूर्ण कारक है तथा आसन पर बैठकर पूजा करने से उपरोक्त संतुलन यथोचित रूप से कायम रहता है जिसके परिणाम स्वरुप साधक एकाग्रचित्त होकर पूजा अर्चना कर पाता है।
5. हमारी पृथ्वी चुंबकीय बल से आबद्ध है। अतः पूजा करते समय जब मंत्रोच्चारण होता है तब सकारात्मक ऊर्जा के संचार में वृद्धि होती है। इसी कारण यदि कोई व्यक्ति भूमि पर बैठकर या बिना आसन के ही पूजा करता है तो अधिकांश सकारात्मक ऊर्जा भूमि में ही तिरोहित हो जाती है, परिणाम स्वरूप साधना करने वाला यथोचित सकारात्मक लाभ से वंचित रह जाता है।