Rangbhari Ekadashi 2024: भारतीय सनातन और सांस्कृतिक परंपरा में काशी का एक अलग स्थान है। बनारस कहें या वाराणसी…. यहां की सुबह भी सुहानी होती है और शाम भी अलबेली। वाराणसी के अमूमन हर त्योहार का प्रतिनिधित्व शिव ही करते हैं।
होली के रंग में जब पूरा देश रंगा होता है, उसके कई दिनों पहले ही वाराणसी में होली का आगाज शुरू हो चुका होता है और इस दिन के उत्सव का नाम है “रंगभरी एकादशी”। आज के आलेख में हम आपको वाराणसी में रंगभरी एकादशी के आयोजन व प्रयोजन की विधिवत जानकारी से अवगत कराएंगे।
ऐतिहासिक तथ्य
काशी में फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी का विशेष महत्व है क्योंकि पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार इसी दिन महादेव अपनी परम प्रिया गौरी का गौना करवा कर पहली बार काशी में लेकर आए थे। अतः महादेव और गौरी के आगमन को रंगभरी एकादशी के रूप में मनाया जाता है। इस दिन को पूरे वाराणसी में उत्सव के रूप में मनाया जाता है और भक्त गण अति उत्साह और उल्लास में अबीर गुलाल की होली खेलकर अपने आराध्य शिव और उनकी अर्धांगिनी शिवा का अद्भुत और भव्य स्वागत करते हैं।
वाराणसी में रंगभरी एकादशी
उदया तिथि के अनुसार इस वर्ष 20 मार्च 2024, बुधवार को काशी में रंगभरी एकादशी मनाई जाएगी। हिंदू पंचांग में रंगभरी एकादशी को आमलकी एकादशी भी कहा जाता है। जैसा कि आप सभी जानते हैं कि एकादशी को श्री नारायण विष्णु की पूजा की जाती है। पर रंगभरी एकादशी के दिन श्री नारायण समेत शिव गौरी की भी विधिवत पूजा की जाती है।
महादेव की नगरी में रंगभरी एकादशी के दिन से ही होली का आरंभ हो जाता है। बाबा विश्वनाथ सहित सम्पूर्ण काशी में हरेक शिव मंदिर में शिवभक्त अबीर गुलाल से महादेव और पार्वती के संग होली खेलते हैं। जैसे कि अपनी सनातन हिन्दू परंपरा में नववधू का स्वागत ढोल, नगाड़ा और रंग गुलाल से किया जाता है, उसी परंपरा का अनुपालन करते हुए काशीवासी मां गौरी का स्वागत अपनी तरह और अपने अंदाज से करते हैं।
अभीष्ट फल की प्राप्ति का दिन है रंगभरी एकादशी
पौराणिक मान्यता के अनुसार रंगभरी एकादशी के दिन महादेव का सफेद चंदन से श्रृंगार पूजन करने और अबीर गुलाल व भांग चढ़ाने से आर्थिक परेशानियों से निजात मिलती है। इस दिन शिव पार्वती को लाल गुलाल चढ़ाने से परम सौभाग्य की प्राप्ति होती है। विवाहित स्त्रियां इस दिन अपने पति की दीर्घायु व सुखमय जीवन के लिए कच्चा दूध शिवलिंग पर अर्पित करती हैं। इस दिन सुहागिन महिलाओं को माता पार्वती को सिंदूर सहित सम्पूर्ण श्रृंगार का सामान अर्पित करना चाहिए।
सनातन हिन्दू परंपरा में रंगभरी एकादशी व आमलकी एकादशी का है विशेष महत्व
फाल्गुन मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को आमलकी एकादशी भी कहा जाता है क्योंकि इस दिन श्री हरि विष्णु पर आंवला चढ़ाने का विशेष महत्व है। ऐसी मान्यता है कि इस दिन नारायण विष्णु को आंवला चढ़ाने से कैसा भी कर्ज हो, उससे छुटकारा मिलता है।
इस प्रकार काशी की अलमस्त औघड़ धर्मी परंपरा में रंगभरी एकादशी का अपना विशेष महत्त्व है जो काशी में होली की शुरुआत मानी जाती है। साथ यह हमारी सनातन सांस्कृतिक परंपरा को कायम रखने का अद्भुत, अलौकिक व गौरवशाली प्रतीक है।