Parkinson: नए रिसर्च में हुआ बड़ा खुलासा, मनुष्य के शरीर में गुपचुप तरीके से बढ़ रही है ये खतरनाक बीमारी

Parkinson: यूं तो मानव शरीर में बीमारियों के आगमन के पीछे कारण व लक्षण होते हैं। लेकिन कुछ बीमारियां ऐसी भी होती हैं जो इतने गुपचुप तरीके से शरीर में प्रवेश करती हैं कि उनका कारण व लक्षण समय रहते समझ में नहीं आता और वो धीरे धीरे शरीर को नुकसान पहुंचा रही होती हैं।

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ऐसी ही एक बीमारी है पार्किंसंस जिसके लक्षण प्रकट होने में भी 10-12 वर्ष लग जाते हैं। उस दौरान शरीर इसके दुष्परिणाम का शिकार होता रहता है। चिकित्सा विज्ञान के अनुसार पार्किंसंस रोग मस्तिष्क में डोपामिनर्जिक न्यूराॅन्स के स्तर को कम करता है जिसके कारण शरीर पर नियंत्रण खत्म होने लगता है तथा विभिन्न परेशानियां दिखने लगती हैं।

बीमारी पर शोध व प्रयोग

इस बीमारी की तह तक जाने के लिए यूनिवर्सिटी डी मॉन्ट्रियल के न्यूरो साइंटिस्ट लुइस-एरिक टूडो के नेतृत्व में गठित टीम ने चूहों पर पार्किंसंस बीमारी के प्रभाव को जानने के लिए कई तरह के प्रयोग किए। वैज्ञानिकों की टीम ने यह पाया कि चूहों के मस्तिष्क में डोपामाइन की सक्रियता कम है जो मस्तिष्क को क्षति पहुंचाती है। जानकारी के लिए बता दें कि डोपामाइन एक केमिकल मैसेंजर है जिसकी दिमाग को सक्रिय रखने में महत्वपूर्ण भूमिका होती है। पार्किंसंस रोग में मस्तिष्क में डोपामाइन का स्तर निरंतर कम होने लगता है।

प्रचलित मान्यताओं के विपरीत नतीजे

इस बीमारी के प्रभाव को जानने के लिए चूहों पर किए गए शोध के परिणाम आशा के विपरीत थे। इसलिए डोपामाइन की भूमिका को पुनः परखने की जरूरत हुई। अतः आनुवंशिक उलटफेर का प्रयोग करते हुए कोशिकाओं की सामान्य गति में डोपामाइन को परखने के लिए न्यूरॉन्स की क्षमता को खत्म कर दिया गया। इस तरह के प्रयोग के बाद परिणाम आशा के विपरीत ही रहे और चूहों में चलने फिरने जैसी कोई समस्या नहीं दिखी। इसी दौरान मस्तिष्क में डोपामाइन स्तर के माप से पता चला कि चूहों के मस्तिष्क में डोपामाइन का बाह्य कोशकीय स्तर सामान्य ही रहा।

इन शोधों और उनके परिणामों के आधार पर वैज्ञानिक इस निर्णय पर पहुंचे कि मस्तिष्क की गड़बड़ी के लिए डोपामाइन का लगातार कम होता स्तर जिम्मेदार है। बीमारी की शुरुआत में बेसल डोपामाइन का स्तर कई वर्षों तक सामान्य रहता है। इसी कारण बीमारी के लक्षण दिखाई नहीं देते। यह तब उभरकर सामने आता है जब डोपामाइन स्तर अपनी न्यूनतम सीमा से भी कम हो जाता है। इन शोधों के परिणाम के आधार पर इस बीमारी के पर्याप्त उपचार के लिए प्रयास जारी हैं।

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